- 78 Posts
- 1604 Comments
यह पद शरू से ही मोहल्ले में होने वाली दैनिक महा भारत का सांस्कृतिक आधार रहा है और
मुहल्ले का हर महत्वाकान्छी समाज सेवक इसका दावेदार , .पर भईया जी जोड़-घटाव इतना सटीक निकलता है की उनके विरोधी हाथ मलते नजर आते है इस बार भी यही हुआ और भईया जी .सर्व सम्मति से रामलीला कमिटी के मुखिया पद पर आसीन हुए
एक सादे समारोह में पुष्पहारो से लदे भईया जी ने धन्यवाद देते हुए मोहल्ले वालो को
आश्वासन दिया की वे राम लीला के विकास के लिए सतत प्रयास करेगे , ताकि हर घर में विभीषण जैसा भाई और सूर्पनखा जैसी बहन हो . उनकी कोशिश तो यही होगी की लंका दहन में उंच -नीच ,गरीब-आमिर की भावनाओ से ऊपर उठ कर मोहल्ले हर घर जलाया जाय . इससे पहले के मुखिया अक्सर अपने विरोधियो के घरो में ही यह पवित्र कार्य सम्पादित करवा लेते थे .
आगे बोलते हुए उन्होंने कहा”सीता हरण जैसी भूमिका में माँ बहनों को उसी प्रकार बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए जिस तरह वे सीता की अग्नि परीछा के समांनातर प्रयोग में अपनी बहुवो को जला कर अपना योगदान देती रही है ” इस प्रकार भईया जी के परिपक्व नेतृत्व में कुछ ही दिनों में सारा मोहल्ला रामलीला मय हो गया
अब पात्रो का चयन शुरू हुआ . राजा दसरथ की भूमिका के लिए कल्लू तागे वाले की योग्यता का आधार उसके सात तागों व दो ब्याहताओ को माना गया अभिनय में वास्तविकता के लिए कलुवा तीन तागो और एक ब्याह की सोच रहा है
पुलिस के नारी प्रेम को देखते हुए हवालदार हुकुम सिंह को देव राज इन्द्र की भूमिका सौपी गयी . इधर तीन बार जेल और दर्जन भर प्रेम संबंधो के प्रगाढ़ अनुभवों के साथ संतो बाई अहिल्ल्या की भूमिका के लए मैदान में आ डटी .
हनुमान जी का अभिनय पाने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवार ने जब बिना पूछ की आग के मोहल्ले का कमुनिटी हालफूक डाला तो कमिटी को झक मार कर उसे लंका जलने का काम देना पड़ा वरना वह कमिटी वालो का घर क्या यु ही छोड़ देता ?
बानरो की भूमिका के लिए मोहल्ले वल्लो ने अपने बच्चो को मैदान में खुला छोड़ दिया दिया बालक बड़े मनोयोग से बानर आचरणों को सीखने लगे,
किसी का सामान छीन कर खा जाना , अन्तः वस्त्रो में घूमना वगैरह वगैरह .
माता सीता की भूमिका के लिए जनक दुलारी नाम की महिला को चुना गया अब तो पूज्य
ससुर जी पर मुझे बड़ा ताव आया . अपनी पुत्री का नाम यही रख देते .तो उनका क्या बिगड़ जाता ?
इसी तरह अपनी घरवाली से झगड़ कर रामुवा ने बीबी का कान काट लिया तो उसे लक्छ्मन व उसकी बीबी को सूर्पनखा का रोल मिलगया.मुझे रामुवा पर बड़ा क्रोध आया यह प्रयोग काश मै अपने घर कर डालता तो दोनों रोल मुझे मिलते न .
मोहल्ले के चोकीदार को कुम्भकरण की भूमिका इस लिए देनी पड़ी की पहरे पर आज तक उसे किसी ने भी जागते हुए नहीं देखा .
जिसको रोल नहीं मिला उनके उत्पातो से बचने के लिए उन्हें जबरन चंदा वसूली में खपा मुखिया जी निश्चिंत थे पर अचानक उनका त्यागपत्र सबको चौका गया जिसने सुना वही भागा . उत्सुकता बस मै भी वहा पंहुचा
सवाल पद का नहीं जनता का है ? मुखिया जी दहाड़े
यही तो मै भी कह रहा हु , रामलीला मण्डली आपके मार्ग दर्सन में सही जा रही है
पर आपके सुपुत्र दिन दहाड़े अहिल्या उद्दार व सीता हरण किस आधार पर कर रहे है जबकि इन भुमिकवो के लिए पात्रो का चयन हो चुका है
” इसमें दिक्कत क्या है ? उसे रोक दिया जायगा ” एक चमचा बोला
तब ठीक है मुखिया जी को पद छोड़ने की जरुरत ही नहीं है दुसरे ने तीर मारा .
मुखिया जी का इस्तीफा वापस हो गया . मुहल्ले की नाक बच गयी .रामलीला मण्डली नए उत्साह से रिहर्सल में लगी हुयी है
Read Comments