राष्टीय एकता की आधार शिला को सुद्रढ़ रखने के लिए सामाजिक सौमनस्य एवम सद भाव परम आवश्यक है |देश भक्ति सर्वोच्च धर्म है | राष्ट्र प्रेम मनुष्य के धर्म प्रेम में सम्मिलित होता है |भारत वर्ष संसार का सिरमौर है .अप्रितम पुण्य भूमि और श्रेष्ट धर्म क्षेत्र है . इस देश के अशेष आदर्शो के प्रतिमान भगवान श्री राम ने जननी एवम जन्मभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ट बताया है .श्री राम का चरित्र युग युगांतर के अंतर में हजारो वर्षो से भारतीय जनमानस के ह्रदय में अंकित रहा है . संस्क्रत एवम सभी भारतीय भाषाओ के प्रमुख कवियों ने भगवानश्री राम के बारे में कुछ न कुछ श्रद्धा सुमन अर्पित किये है .
इतिहास के प्रष्ठो पर नजर डालने से यह प्रमाणित होता है की साकेत नाम से विख्यात
इस नगर का गौरवशाली अतीत धर्म ,संयम , एवम अध्यात्म का केंद्र रहा है .प्राचीन भारतीय साहित्य संसार में बौध ग्रंथो में साकेत के रूप में अयोध्या का महत्व पूर्ण उल्लेख किया गया है . बुद्ध के समय के छः प्रमुख नगरो में साकेत की गिनती होती थी .विख्यात बौद्ध भिक्षु सारिपुत्र एवम अनिरुद्ध के अयोध्या में ठहरने की बात प्रमाण सहित मिलती है मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद जिन चार शक्तिशाली प्रशासनिक इकइयो का उदय हुआ उनमे अयोध्या भी एक है . सम्राट हर्ष वर्धन के राजत्व कालमे सन 629 में चीनी यात्री हुयेनसांग ने अयोध्या की यात्रा के दौरान यहाँ की वैभव शाली पम्प्राओ एवम नागरिको के स्नेह पूर्ण व्यवहार का वर्णन किया है . इस सम्बन्ध में प्राचीनतम बौद्ध साहित्य में वर्णित तथ्यों की पुष्टि कालांतर में हुयेनसांग के द्वारा होती है . अयोध्या साम्प्रदायिक एवम धार्मिक संकीर्णता या सामाजिक विघटन करी प्रबत्तियो से अलग , अपूर्व,और अद्वितीय ज्ञान केंद रही है .प्रमाणों की परिधि इस बात को स्पष्ट करती है की अयोध्या मूलतः मर्यादा पुरुषोतम श्री राम की जन्म भूमि रही है .जिसे बौधो ने वेद बिरुद्ध धार्मिक पुनर्जागरण काल में अपना केंद्र बनाया .राज सत्ता के परिवर्तनों के साथ साकेत में भी परिवर्तनों का दौर चला . अयोध्या मुस्लिम शासन काल में भी सन १२०६से १८०० तक आद्यात्मिक विरासत की धरोहर बनी रही . भक्ति आंदोलनों के दौरान भी यह अनेक संतो की आराधना स्थली बनी . वैष्णव भक्ति शाखा के अग्र दूत रामानंदाचार्य की रामोपासना के आदर्शो में लीन साधक . भक्तो की भक्त भूमि अयोध्या ही रही . गोस्वामी तुलसीदास के भक्ति साहित्य की रचना स्थली अयोध्या ही थी . नाभा दासने अयोध्या नगरी से बाहर रह कर भी” भक्तमाल ” की रचना कर भक्ति परम्परा को अमर कर दिया .तुलसी दास एवम नाभा दास सम कालीन थे. अयोध्या में ही राम भक्ति परम्परा को जारी रखते हुए परम हंस रामसेवक ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया . इस प्रकार इतिहास की धरती पर अयोध्या जीवंत भूमिका अदा करती रही है . इसकी ऐतिहासिकता ,राजनीती ,आध्यात्मिक अनुशीलन,एवम वैष्णव भक्ति की अस्मिता से संपन्न रही है . ऋग़ वेद के दशम मंडल में भगवान श्री राम का उल्लेख किया गया है . यही नहीं समस्त भारतीय वांडमय में राम कथा का वर्णन है तथा श्री राम के दिव्य रूप का बखान है .इतनी प्राचीन व्यवस्था एवम अविछिन्न परम्परा विश्व इतिहास में बहुत कम कथाओ में मिलती है . इतिहास के ये जीवंत दस्तावेज तथ्यों सहित यह प्रमाणित करते है की भगवान श्री राम ने इस भूमि पर जन्म लिया था .यदि हम राम जन्म भूमि मुक्ति के लिए किये गए प्रयासों के ऐतिहासिक दस्तवेजो की बात करते है तो राम जन्म भूमि मुक्ति के लिए कुषाण काल में शायद पहला संघर्ष किया गया .सन 1033 में सालार मासाद के काल में राजा सुहेल ने दो बार संघर्ष किया . बाबर के शासन काल से लेकर वाजिद अली के शासन काल तक देवी दीन पाण्डेय , रानी जय कुमारी ,गुरु गोविन्द सिंह जी , राजा गुरु दत्त अमेठी, पंडित भवानी दत्त आदि द्वारा चौहत्तर बार संघर्ष किया गया . यही नहीं अंग्रेजी शासन काल में भी 1934 तक सामान्य जनता ने दो बार श्री राम जन्म भूमि मुक्ति हेतु चढ़ाई की . अब जब न्यायलय का फैसला आने वाला है तो भारत की कोटि कोटि आकंछाओ को न्याय मिलेगा .
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