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कटि कंचन को काटि कै

MERI NAJAR
MERI NAJAR
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बाते ख़त्म थी ,यु भी इस उम्र की बातो में दम ही कितना होता है और जनाब रस की उम्मीद करना तो .बालू से तेल निकलना ही होगा ….|
मगर रात अभी बाकी थी ,बुढौती में यु भी नीद आती जाती रहती है | बड़ी मुश्किल से सोया था की दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी,
अब इतनी देर कौन आया होगा ? कोई भटका हुआ राहगीर , या सुबरन की खोज में कवि , व्यभिचारी , या चोर में से कोई
गलत जगह पहुच रहा है ? लाख पुलिस में सही मगर हवलदार हुकुम सिंह से ऐसी उम्मीद नहीं की वे रात को मेरा दरवाजा पीटे| अभी मै
अपनी सोच को कुछ और आगे ले जाता कि दस्तक के साथ आवाज भी सुनाई पड़ी ” अब दरवाजा खोल भी दी दीजिये ”
मन मार कर उठना ही पड़ा “कौन है ” |
” परिचय तो दे ही दूगा आप जरा बाहर तो निकालिए ”
“पहचाना मुझे ” मेरे बाहर निकलते ही उसने प्रश्न दागा ?
मैंने भी” नहीं ” का फायर किया
ये ……-ये पंडित जी का घर है न
हा घर तो उन्ही का है
तो हमारे पंडित जी कहा है ? अरे वे तो हमेसा मुझे मेरी पद चापो से पहचान लेते थे ‘कभी दस्तक कि जरुरत ही नहीं पड़ती थी | आप कौन ?
“किस पंडित की बात कर रहे है आप ? जनाब अपना परिचय क्यों नहीं देते| इस तरह रात के अँधेरे में ये पहेलिया ..बुझा रहे है ..
मै उन पंडित जी के पास आया हू जो अगाध श्रधा व भक्ति से सुन्दरियों की उपासना में लीन रहा करते थे | जिनके श्रृगार रस से परिपूर्ण ह्रदय में दो चार सुंदरिया सदा नर्तन ,विचरण व किलोल करती ही रहती थी |
क्षमा कीजिये मै आपको पहचान नहीं पा रहा | मै सकपकाया भीतर झाका तो श्रीमती जी के खर्राटे जारी थे |
“पर मै अब आपको पहचान गया मित्र , मै बसंत हू |
क क कौन बसंत ? और मेरे दिल के बारे में तुम क्या अनाप सनाप बक रहे हो| इस बुढ़ापे में कोई सुनेगा इस तरह की बात तो क्या सोचेगा मेरे
बारे में |
मित्र नाराज ना हो मै ऋतुराज हू तुम्हे याद नहीं तुम कितनी बेकरारी ,कितने उत्साह से मेरे आगमन की प्रतीक्षा किया करते थे | आज बैठने के लिए भी नहीं कहोगे ?
आओ ऋतुराज आज सचमुच नहीं पहचान पाया ,पर इस बार मेरे पास लम्बे अरसे बाद आये होपिछली बार जब आये थे , तब प्याज रूपये का सेर भर मिलता था |
तब गली चौराहे ,प्रेम रस से सराबोर रहा करते थे बागो में कोयले कूकती थी ,उपवनो में फूल खिलते थे |
अब गली चौराहे घोटालो से जगमगा रहे है | मित्र बागो में बलात्कारी घूम रहे है | राजनीती बे शर्मी से गठबंधन धर्म से उपजे भ्रस्टाचार को अपनी कोख में पोश रही है | अब तुम्ही
बताओ इतने लम्बे अरसे बाद मै तुम्हे किस तरह पहचानता | फिर तुम रात के अँधेरे में इस तरह घूमोगे तो भला कोई पहचानेगा भी कैसे ?
मित्र मै तो दिन के उजाले में ही खेतो , बागो , बगीचों में विचरण किया करता था ,पर एक बार किसी बगीचे में मेरा मुकाबला एक पुलिस वाले
से हो गया |
तो क्या हुआ ,इसमें गलत क्या हुआ ?
पंडित जी गलत नहीं गजब हुआ , बासंती उत्साह से सराबोर उस पुलिसिये ने धडाधड नारी चीर हरण का शतक पूरा कर ही दम लिया , तिस पर अख़बार वालो ने उसका बचाव करते हुए सारा दोष यह कह कर मुझ पर लाद दिया कि बासंती हवा कि मादकता ने इस गरीब को यह
करने के लिए मजबूर कर दिया | बस तभी से मैंने दिन में भ्रमण करना छोड़ दिया | और क्या क्या बताऊ ,,मित्र … मुझ पर क्या क्या इल्जाम
लगे है |
इल्जाम ? क्या कह रहे हो दोस्त , किसने लगाये है तुम पर ये इल्जाम |
सुंदरी तरुणियो ने | एक ने कहा सखी री ये ऋतुराज देखो कैसे देह के पोर- पोर को कंचन किये दे रहा है ,मुख कि यह लुनाई तो पहले ऐसी नहीं थी |
सखी इस रूप के लोभ से ये रसिक मजनू रूपी भ्रमर सुबह शाम मेरे आस पास मडराते ही रहते है |
हा सखी यह सब तो मुझे बसंत का ही किया धरा लगता है सखी मै क्या कहू शर्म आवे है इस निगोड़े ने” क़टि कंचन को काटि कै जड़ेयो लाय
उर मांझ ,,,,,, | उसके इस कृत्य से सखी हमारी अंगिया छोटी पड़ गयी है , …. मुझे लाज आवे है
बस इतनी सी बात तुम दिल छोटा न करो मित्र मै इन सुन्दरियों को समझा दुगा , आइन्दा वे तुम पर इल्जाम नहीं लगाएगी
ठीक है मित्र अब चलता हु अगली बार आऊ तो पहचान लेना |
ठीक है ऋतूराज इस बार की भूल को बिसार देना | हा एक बात और आगे थाने पर हवलदार हुकुम सिंह बैठे है सो उस रास्ते से मत जाना ,
कही तुम्हारी हवा उनको लग गयी तो ,.. भगवान भला करे ….
अब तो कल सुबहके अख़बार से ही पता चलेगा कि ऋतुराज किस रास्ते गए .हुकुम सिंह को बख्स दिया भी या नहीं | और हा अगर आपने कमेन्ट
देने में कंजूसी की तो अगली बार ऋतुराज की लिस्ट में आपका नाम भी शामिल करवा कर ही मानूगा |

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