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फागुन की ठिठौली

MERI NAJAR
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फागुन माह के आगमन के साथ ही जन मानस का उत्साह चरम पर पहुच जाता है फिर भला बैसवारा इससे कैसे अछूता रह सकता है |यहाँ की चौपाले

शाम होते ही ढोलक की थापों ,मजीरो व झाझो की मिठास से मिश्रित फाग की मस्ती से भर जाती है | आइये देखते है अवधेश कुमार श्री राम व नन्द लाल

मुरली मनोहर श्री कृष्ण की चरण बंदना करती भक्ति मय फाग की बानगी

भजु रघुबर श्याम जुगुल चरना |
इत दसरथ घर जनम भयो है ,उत बासुदेव के भये ललना
इतै कौसिला गोद खेलावै,उत जसुमति जी झुलावै पलना
भजु रघुबर श्याम जुगुल चरना |

भक्ति की इस धारा की रस धार में डूबते हुए मैहर की देवी माँ शारदा को याद करते हुए वे गा उठते है

फिर लीजै हरी को नाम ,पहिले देवी शारदा को गइए |
काहे की मठिया बन थपकी , का है झंडा निशान ,अरे हँ का है झंडा निशान |
पहिले देवी शारदा को गाइए |

फाग की यह मस्तीसिर्फ लोकगीतों तक ही सिमित नहीं है तुलसी दास, सूर व कबीर की रचनाये भी यहाँ बहुत ही प्रेम से गयी जाती है |

कहत कोऊ परदेशी कै बात
मंदिर अरध अवधि हरिबदिगे हरि आहार टरि जात
अजया भख अनुसारत नाही कैसे का दिवस सिरात

कहत कोऊ परदेशी कै बात

फागुन की ठिठौली तो देखिये श्री कृष्ण राधा रानी से मिलने नारी वेशमें उनके गाँव जाते है |

“कान्हा भलो बन्यो बाना
अँगुरी के पोर पोर छल्ला सोहै,छल्ला पाव अंगुठाना
मुख माह पान नयन मह काजल लई दर्पण मुस्काना
………………..
बृन्दाबन की कुंझ गलिन माँ कोऊ कोऊ पहिचाना
सुर श्याम बलि जावु चरन की नारि नही मरदाना ”
कान्हा भलो बनायो नाना |

सामाजिक सदभाव आपसी प्रेम व भाई चारे को सदियों से पोषित करते ये लोक गीत वर्ष भर की मन की तिक्तता को उल्लास

के चटक रंगों से भर कर रिश्तो मजबूत कर देते है | बिना किसी भेद भाव के सबके लिए शुभ कामनाये व आनंद बिखेरती फाग

का यह रंग भी देखिये

बनी रहै सब हुन कै जोड़ी नित उठि ख्यालै होरी हो
कहै सुने का माखु न मान्यो बरष दिना कै होरी हो “

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