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फागुन कै असि बाऊरि प्रीती

MERI NAJAR
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तलफै बिन कंता मन मोरा |

मै अलबेली कठिन डगर है ठग ठाढ़े चहु ओरा |

रूप देह के लोभी पग पग ,पग पग चित्त लुटेरा |

माया का री   विषम जाल है अज्ञानिन का डेरा |

कोऊ कहै यह तिरिया मेरी कोऊ कहै घर मोरा |

फागुन कै असि बाऊरि प्रीती यह है तम का घेरा |

कांच समेट धरयो कंचन कहि,अबहू जागु सबेरा |

करले प्रीति मोरे बालम सो लखु रे जीव उजेरा |

जिन पहिचाना मोरे कन्त को मन मालाको फेरा |

सुगम भाई तिनको वह सेजिया कीन्हा संग बसेरा |

तलफ़ि तलफ़ि रे उनहि पुकारो वह तो है सब केरा |

कहत” रमेश “हरो तम मन का काटो भव का फेरा |

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