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सदभावनाओ की प्रतीकहोली -holi contest

MERI NAJAR
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भारतीय जन जीवन का उल्लासमय पर्व होली किसी , धर्म ,सम्प्रदाय या जाति विशेष का त्यौहार न होकर यहाँ की माटी के कण कण में
कुछ इस तरह से समाहित हो गया है की यह बसंती उत्सव सारे जन समुदाय के लिए प्रेम और ,उल्लास का त्यौहार बन गया है सदियों से यह
त्यौहार भारतीय संस्कृति की सामाजिक प्रष्ठभूमि में सद्भावो का पोषक रहा है | होली के बासंतिक वातावरण में लोग जाति, धर्म ,उंच-नीच के भेदभावो को भूल कर उत्साह भरे मन से एक दुसरे को प्रेम के बंधन में बांध लेते है |
प्राचीन साहित्य इस बात का प्रमाण है की होलिकोत्सव भारत में ऋतुसम्बन्धी त्योहारों में प्रमुख रहा है | कालिदास ,भवभूति ,बाणभट्ट आदि
कवियों ने अपनी अमर कृतियों में बड़े ही आकर्षक ढंग से इसका वर्णन किया है | यही नहीं लोक काब्य में बारहमाषा का वर्णन मानव एवम प्रकृति के चिरपुरातन व अनन्यतम संबंधो का परिचायक है | इसमें भी बसंत को सर्वोपरि माना गया है , क्योकि वह प्रकृति के समूर्ण सौन्दर्य ,सौरभ , तथा मादकता को अपने मलय स्पर्स से प्रस्तुत करता है |
लोक जीवन को होली का अनूठा रंग अलग ढंग से ही सम्मोहित करता है | उसका सरस सम्बन्ध ही प्रेम ,संगीत ,सद्भाव व विनोद से है | मानवीय भावो को बहुत ही आत्मीयता से आत्मसात कर यह त्यौहार सामाजिक परिवेश को अपने विविध रंगों से गतिशील कर देता है |

भारतीय जन जीवन धर्म व दर्शन से निर्देशित रहा है यही कारण है की यहाँ के त्यौहार पुराण या धर्म कथाओ से जुड़े रहे है होली का भी कुछ ऐसा ही इतिहास है |भारतीय संस्कृति में प्रत्येक ऋतु से जुडी मानसिक स्थिति और हर्षातिरेक का हाव भाव प्रकट करने के माध्यम के रूप में कोई न कोई पर्व या त्यौहार मानाने की परम्परा के पीछे परस्पर प्रेम व भाई चारे को बढ़ावा देने का उद्देश्य मानवीय हितो को ध्यान में रख कर ही कायम किया गया है अतह होलिकोत्सव की उत्पत्ति की मूल कथा जो भी रही हो पर प्राचीन काल से ही यह त्यौहार प्रेम व सदभाव को प्रगाढ़ करता रहा है |

दुख का विषय तो यह है हमारे सांस्कृतिक पर्वो के साथ जो गरिमा प्राचीन काल में थी उसका अंश मात्र भी अपने शिष्ट रूप में नजर नहीं आ रहा है | अश्लीलता , अभद्रता , कटुता व द्वेष पाल कर होली मानाने का मतलब हम अपनी संस्कृति का मजाक उड़ा रहे है |
महा कवि निराला की ये चंद पक्तिया प्रेम व सदभावो के लिए कितनी प्रासंगिक है ” –
“फागुन का फाग मचे फिर ,गावे अली गुंजन होली

हंसती नव हास करे फिर बालाए डाले रोली “

आइये प्रेम की रसधार से एक दुसरे को सराबोर कर होली की गरिमा को सार्थक करे |

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