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मोरी बेसरि लई भाग काग -Holi contest

MERI NAJAR
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सिर पर पैर रख कर भागा तो मगर भाग कहा पाया सामने ही मनोजवा की अम्मा यानी हुकुमसिंह की धर्मपत्नी गुल्लो भौजी , अपनी सखियों

समेत राह रोक कर खड़ी हो गयी| ” हे पंडित जी कहा भागे जा रहे हो ,तनी हमहू से मिल भेट लेव | आज साल भर का त्यौहार है “

“सो तो हइये है और बहिन पंडित जी थाने का पोगराम बिच्चे में छोड़ कर चोर की माफिक निकरे जातरहे जरुर कऊनो बात है “मुनसियाइन भउजीने अपना तीर छोड़ा “|

“तब तो आज पंडित जी को एकदम नहीं छोडूगी | आरक्षी नारायन चौबे की फूलकली चहकी | ” सिपाही जी कहत रहे पंडितवा तो बरका होरिहार

है महीनो पहले से होरी पर बिलाग पर बिलाग [ब्लाग ]ठोक रहा है भागवान तनी उसकी नजर से बच कर रहना उसकी फाग के चक्कर में तो पड़ना ही नहीं ” |

” इ बात तो हमको मुन्सी जी भी समझाए थे ,मगर सच कहू मनोजवा की अम्मा मै तो फागुन भर इ होरिहार का मने – मन इंतजार करती रही , मगर आज बड़े मौके से धरा गए है इ सारे अरमान आज पूरे करुगी हा “

“भौजी अभी थोड़ी जल्दी है कहिये तो शाम को सेवा में हाजिर हो जाउगा ,” मैंने हाथ फेका, क्योकि इन लोगो के हाव भाव मुझे ठीक नहीं लग रहे थे |पता नहीं क्या हाल करे मेरा |

‘ ना लल्ला ना ये झासा किसी और को देना पिछली होली में भी तो यही कह कर गायब हुए थे ” फूलकली भउजी दहाड़ी |

“बहिन अब इ बताओ कि इनको लेकर थाने चले कि घर ” |

“घर चलते है वही सतिया को भी बुलवा लेगे तब मजा आयेगा |

हुकुम सिंह के घर पहुच कर मेरी हालत का अंदाज आप को तभी हो सकता है जब पुलिस वालो से आप ने क़ी दोस्ती हो | मेरा रिरियाना ,गिडगिडाना , बिनती करना ,हाथ जोड़ना सब उसी गति को प्राप्त हो गया जो मनमोहिनी अर्थशाश्त्र का महगाई के साथ हुआ है |

आदेश हुआ क़ी” झुमका गिरा रे वाले गाने पर नाच कर झुमका गिराओ वर्ना बेसर पहना कर मोहल्ला घुमाउगी |

कान में झुमके लटका कर लाख कमर हिलाने के बाद भी मुए झुमके कान में अंगद के पांव की तरह जमे रहे |

तभी न जाने कहा से आत्मीय श्री शाही जी आगे आगे व सतिया उनके पीछे वहा पहुची |मै तो शर्म से गड़ गया |

क्या सोचेगे ? भक्ति रस की धारा बहाने वाले ब्लागर का यह है असली रूप , मेरी आँखों से गंगा -जमुना टपकती की अनुभवो से परिपक्व श्री शाही जी सारा

माजरा समझ गए |

” ना सर ना मै आ गया हु तो अब कुछ तो करुगा ही | होली मिलन के लिए आया था पर अब इस हालत में साथ थोड़े ही छोड़ूगा |आप कमर के बजाय कान हिलाइए तब ना गिरेगा झुमका ” |

“पर कान हिले तब ना , गाय भैस का होता तो हिल जाता अब तक | भगवान की यह गलती आज समझ में आई |

“क्या सोच रहे है सर मुंडी हिलाइए कान अपने आप हिलेगा ” वे बोले |

बस इधर जोर से सिर हिला उधर झुमका हुकुमसिंह के आगन में गिर गया | मेरी नाक बेसर से बच गयी | सुना था फागुन में कागा कइयो की

बेसर लेकर भाग जाता है पर आज देख भी लिया |

इधर शाही जी को घेर कर सतिया गा रही है

“‘ जो मै होती राजा बन की कोयलिया , कुहुकि रहती राजा रांची शहर में |

मित्रो बसंत पंचमी से चढ़ा फागुन का यह रंग यह उत्साह अपने अंतिम पड़ाव पर पहुच गया है | अपनी सांस्क्रतिक विरासत व उमगो के त्यौहार होली को विरासत के रूप में अगली पीढ़ी को सौपने की खातिर इस त्यौहार के नाम पर अश्लीलता, फूहड़ता,व कलुषित भावनाओ को होली की आग में जलना ही होगा नहीं तो प्रेम का यह पर्व इतिहास बन जायेगा |

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