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दैव ने लिलार लिख्यो काह

MERI NAJAR
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पाव सेर आटा मा सेयो अतिथि नाथ|

सेर भरि दालि कबहू घरै आई ना||


न्योत हँकारी मा मुख तो मीठ भयो|


आपनि गांठि कबहु देख्यो हलवाई ना||

चौथ पन आवा तन अबहू तो पिया|

कउनो हुलास कबहु पूरी करवाई ना||

दैव ने लिलार लिख्यो काह,जाने कौन ?

नीति ,रीति ,भक्ति काम कछु आई ना ||

द्वारिका के नाथ तो मीत है तुम्हारे नाथ|

चलो उनसे बिपति हाल चलिकै बताई ना||

दूध,दही ,छांछ,सालन कै चाह नाही |

पेट भरि भात नाथ लरिकन जेवायी ना||

न्याय पंथ चलन हार   ,धरम के वी दुवार|


मन की बात “रमेश” उन तक पहुचाई ना ||

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