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संबोधन के शब्द

MERI NAJAR
MERI NAJAR
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संबोधन के शब्द खोखले

गहरी पीड़ा

आहत है मन

फिर भी भटक रहा हू मै

क्यों इस मरुथल में ?

बिसर गए वे पढ़ कर मुझको

जो भावो के माहिर कहलाते

कैसी तुला ,न्याय कैसा यह

भावो के इस जंगल में ?

शब्दों के ये चित्र हमारे

मेरा पूजन ,बंदन है

कब ख्वाहिश जय कारे की

कब खुद के अभिनन्दन की ?

मेरे भाव प्रेम के प्यासे

धर्म मेरा लेखन

मै यायावर भाव जगत का

और सत्य उदबोधन |

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