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कितनी सुन्दर मेरी झाँसी

MERI NAJAR
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सागर चरण पखारे जिसके


सुन्दर है परिवेश

भिन्न भिन्न है बोल बोलते

किसिम किसिम के वेष

फिर भी हम सब एक है

देते है संदेस |||

सुन्दर मेरी मथुरा ,काशी

पतित पावनी गंगा

दर्शन करके विश्वनाथ के

मन होता है चंगा

आशुतोष प्रभु अमरनाथ में

रहते भारत देश |||

झाँसी मेरी कितनी सुन्दर

जहा लड़ी मर्दानी थी

कानपुर ने रच डाली

आजादी की क़ुरबानी थी

बीर भगत सिंह का जायज था

अंग्रेजो के प्रति रोष |||

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