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सगरो बृज मंडल छाई गयो है

MERI NAJAR
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जा दिन सौ जदुराई को भौन ,वो सांवर छोरा आई गयो है |
आठौ सिद्धि नवो निधि को सुख ,सगरो बृज मंडल छाई गयो है |
मुख देखि सदा हुलसै जसुदा सुख सागर हिया समाई गयो है|
नन्द उछाह ककस बरनव ,कंगला जस कंचन पाई गयो है  |
सब काजु बिसारि कै ग्वालिनिया ,छिनु छिनु नंद द्वारे भीर करै है |
उर उमगत नेह नितै नूतन ,मुख चूमन कोटि उपाय करै है|
हिय प्रेम को सागर उत बाढत , इत सावन सो नयन झरै है |

भाव विभोर सबै जड़ चेतन ,     आये हरी    भुई भार हरै है |
मति मंद” रमेश ” धरा लोटे जेहि मारग सब दर्शन करि निकरे |
हे नंद के लाल दया कीजै पद पंकज नाथ न अब बिसरे |

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