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धर्म ध्वज संसार में फहराएगा

MERI NAJAR
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दिवस का अवसान जाने कब हुआ |

शांत कोलाहल नगर पथ पर हुआ |

दीप अट्टालिकाओ के जले अब बुझ रहे |

नीद के आगोश में कुछ गए ,कुछ जा रहे |

मौन से होकर मुखर , स्वर थे अब प्रखर |

ऋचाए वेद की सी बांचते दादुर |

आगोश में जकड़े धरा को गहरा तिमिर |

लड़ रही चपला तिमिर से ,मध्य रात्रि का प्रहर |

योग माया रच रही थी खेल सारा |

गहन तन्द्रा में गए प्रहरी, खुल गए सब द्वार कारा |

बेडिया, हथकडिया स्वतह ही खुल गयी |

पति को देवकी ने तब पुकारा |

नाथ देखो अलौकिक यह नजारा |

गोद में मेरी आ गया मेरा दुलारा |

थी सुखद अनुभूति , उर उल्लास छाया |
मुख चूम कर तब तात ने माता को बताया |
निरख लो अब लाल को , नियति ने है कहलवाया |
नन्द के घर सुत छोड़ कर मै अभी आया |
प्रिये लल्ला धर्म ध्वज संसार में फहराएगा |
चरण रज में लोट कर कथा रमेश सुनाएगा |

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