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ठहर बयरिया फागुनी

MERI NAJAR
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कागा मोरे आँगना सगुन मनाओ आय |
मन पाहुन परदेश से घर जल्दी आ जाय |

ठहर बयरिया फागुनी छिलति मोरे गात |
भरी अगिनि री देह में मन रहि रहि सिसियात |

फागुन आया गांव में महुवा महका बाग |
बिना कन्त कस फगुना,कस होरी कस फाग | |

कागा रे उड़ि चलो जाव पिया के पास |

मोर संदेसा दई कहेव फागुन मिलन पियास

फागुन का दुष्कर विरह नयी नवेली नारि |
धवल चांदनी करि रहीं, रहि-रहि मो सौ रारि|

( कान्त -पिया , रारि – शरारत )


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