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मौन हो मुझको पुकारा

MERI NAJAR
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तुम प्यार का घट मधुर शीतलता लिये |

प्यास का मै उष्ण मरुथल प्रिये |

जलज पत्ते पर पड़ी ,तुम ओस की बूंदो सरीखी |

औदार्य की माधुर्य की ,तुम झील हो मीठी |

तृप्ति की तुम झिलमिलाती प्यारी किरन |

मरीचिका में फंसा मै प्यास से ब्याकुल हिरन |

तुम ज्योत्स्ना से नहायी भावनाओ की छाँव |

मै भटकता ढूढ़ता हूँ प्रिये तेरा गांव |

मै पपीहे सा पिय – पियू रटता रहा |

स्वाति का अमृत कलस अन्यत्र झरता रहा |

बिरह का मै हूँ बवंडर ,सिंधु का मै जल हूँ खारा |

हाय फागुन मास में तुमने मुझे कुछ यूँ पुकारा |

नेह को आतुर नयन पा गए कुछ यूँ किनारा |

बोलती उस दृष्टि ने जब मौन हो मुझको पुकारा |

[ प्रवास की वजह से फागुन की रचनाये पोस्ट नहीं कर पाया अतः कुछ पोस्टो में ही सब समेटने का प्रयास कर रहा हूँ ]

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