Menu
blogid : 2222 postid : 738172

पुलिस लाइन शामियाने से

MERI NAJAR
MERI NAJAR
  • 78 Posts
  • 1604 Comments

मनोजवा की बात सुनते ही हुकुम सिंह चौकन्ने हो गए | उनके बाल चोर ,उचक्कों ,शातिर बदमासो से मुकाबला करते हुए ही सफेद हुए है | उन्होंने ताई के कान में कुछ कहा और छलांग लगा कर माइक पर पहुंच गए |
“हेलो हेलो मैक टेस्टिंग ‘ रे बलभदरा दू घंटा पहिले तुमको बताया था कि पुलिस लाइन की समस्त महिलाओ को शामियाने में आने का अनुरोध घर घर चहुँपाओ [पहुचाओ ] और कहा था कि कलुआ का दोकान [दुकान] से पाव भर रबड़ी व सेर भर जलेबी हवलदारिन सा को मेरी तरफ से भेट कर यहाँ पंडाल में गुलाल खेलने का मनुहार कर दो |मगर ससुर का नाती तू तो भांग पीकर यहाँ ढेर है | रे मनोजवा तनी अपनी माई को मेरी तरफ से नमस्ते कर पंडाल में ला तब तक मैं बाकी महिला जन को यहाँ पहुचने का निमन्तंन [निमंत्रण ] देता हू|”
हुकुम सिंह ने कनखियों से हवलदारिन को देखा ,सचमुच जैसे जादू हो गया तनी हुयी भंगिमा हलकी मुस्कान में बदली व झाड़ू वाला हाथ नीचे हो गया |
हुकुम सिंह खिलखिला कर हँसे | सच कहता हू हँसती हुयी पुलिस मुझे बहुत अच्छी लगती है| माईक पर वे चहके ” मैं बताना चाहता हू समस्त महिला मंडल को ताई अपने हाथो उपहार देगी ‘किरपा कर आप ग्रहन करे | आरक्षी नारायण चौबे तीन जवान के साथ फूल माला से हवलदारिन सा का स्वागत करे |”
गले में फूलमाला पहने हवलदारिन यह सोच रही थी कि पाव भर रबड़ी में आधी तो मनोजवा चट कर जायेगा , आध पाव हवालदार सा को देनी होगी ,भला आज त्यौहार के दिन सूखी जलेबी मैं कैसे खाऊगी | यह बात हवालदार सा को बतानी पड़ेगी अभी |
इधर श्री आकाश तिवारी जी व श्री जवाहर जी दुलारी को अमरुद के गुण काफी देर से समझा रहे है |
“‘सो बात जो आप लोग कह रहे है वो हमरे पल्ले नहिये पड़ी ,काहे कि हमको पता है अमरुद का भाव अउर सोना का भाव में बहुते अंतर है | अब तुम बताओ अमरुद का भाव का है ?
“दुलारी जी हम भाव कि नहीं गुण का बात कह रहे है ” आकाश जी बोले |
“न न कटि कंचन को काटि का कुछ मतलब तो होगा |पंडित जी को हम बहुत नजदीक से जानते है वो बिना मतलब कि बात तो करते ही नहीं ,बस कमी उनमे एकै है हमरा सामना होते ही भागने का फ़िराक में पड जाते है “|
“देखो दुलारी हम बताते है प्राचीन काल में सुंदरिया कटि यानी कमर में कंचन यानी सोने के भारी आभूषण पहनती थी | सो महगाई को देखते हुए आदरणीय श्री बाजपेयी जी ने उस भारी गहने को काट कर हलके गहने बनवाने व बाकी सोना बेचने की खातिर ही काटने की बात लिखी होगी “|
“न जवाहर भइया न पंडित जी बेकार की काट कूट में भेजा नहीं खपाते बात कुछ और ही है “|
“दुलारी जी तुम जवाहर भईया की जगह जवाहर जी कहो तो अच्छा लगेगा “|
“न जवाहर भईया, जी तो हम पंडित जी के आगे ही लगायेगे | आपको व आकाश भईया को हम भईया ही कहेंगे | हा न मंजूर होतो अपना अमरुद वापिस लेलो ‘मैं चली|अब पंडित जी से ही पूछूँगी “|
अब आलम यह है की उधर दुलारी मुझे ढूंढ रही है | इधर मेरे दोनों साथी मुझे ताक रहे है |
भगवान अब अगली होली तक ये लोग मुझे यु ही ढूढ़ते रहे |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to alkargupta1Cancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh