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प्यार को लघु जिंदगी

MERI NAJAR
MERI NAJAR
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कुछ खबर अपनी सुनाओ

हाल अपना तुम बताओ

ग्रीष्म में सूखी हुयी सी

पास बहती वह नदी |

नियति से बन दो किनारे

पास होकर दूर है

इस तरह रहते दिलो में

न दुआ न बंदगी |

वक्त की चादर तले

ढक गए वह भाव मीठे

तिक्तता ही तैरती है

प्रेम की सूखी नदी |

मन के आँगन में उतरना

चाहती है यादे मधुर

रोक करउनको खडी है

आज रिश्तो की बदी |

डोर उलझी इस कदर

अब तो पराये गांव में

नफरतो की ईमारत

हो रही है जिंदगी |

रुठने को दुनिया पड़ी है

भूलना बस यह कड़ी है

वक्त है तो सोच लेना

प्यार को लघु जिंदगी |

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